बेंगलुरु: कर्नाटक हाईकोर्ट ने KG Halli-DJ Halli दंगे मामले में 14 आरोपियों की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने विशेष NIA कोर्ट द्वारा UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) के तहत उनके खिलाफ आरोप तय करने के आदेश को चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति श्रीनिवास हरिश कुमार और न्यायमूर्ति के एस हेमलेखा शामिल थे, ने 29 अप्रैल को यह फैसला सुनाया, जिसे इस सप्ताह सार्वजनिक किया गया। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि याचिकाकर्ता यह साबित नहीं कर सके कि यह कोई “रेयरस्ट ऑफ द रेयर केस” है, जिससे हाईकोर्ट को अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप करना चाहिए।
📌 पृष्ठभूमि: क्या है KG Halli-DJ Halli दंगा मामला?
अगस्त 2020 में बेंगलुरु के KG Halli और DJ Halli इलाकों में हिंसा भड़क उठी थी, जब करीब 30 लोगों की भीड़ ने एक व्यक्ति की गिरफ्तारी की मांग को लेकर KG Halli पुलिस स्टेशन का घेराव किया। आरोप था कि उस व्यक्ति ने एक समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी सोशल मीडिया पर पोस्ट की थी।
शुरुआत में शांतिपूर्ण रहे इस प्रदर्शन ने देखते ही देखते हिंसक रूप ले लिया। पुलिस को लाठीचार्ज और बाद में फायरिंग तक करनी पड़ी। शुरू में इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था, लेकिन बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने UAPA के तहत मामला दर्ज कर लिया, जिसमें आतंकवाद और साजिश जैसे गंभीर आरोप जोड़े गए।
🧑⚖️ कोर्ट में क्या हुआ?
आरोपियों ने विशेष NIA कोर्ट में डिसचार्ज (छूट) की मांग की थी, यह कहते हुए कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है। लेकिन विशेष अदालत ने इस याचिका को खारिज कर दिया, जिसे बाद में हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।
NIA के वकील ने हाईकोर्ट में तर्क दिया कि विशेष अदालत का आदेश ट्रायल प्रक्रिया का हिस्सा है और NIA अधिनियम के तहत उसे चुनौती नहीं दी जा सकती। उन्होंने यह भी कहा कि अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट का हस्तक्षेप केवल तभी संभव है जब अधिकार क्षेत्र में गंभीर त्रुटि हुई हो।
वहीं, आरोपियों के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किलों के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया प्रमाण नहीं है और ट्रायल चलाना न्याय की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
🚫 हाईकोर्ट का निर्णय
हाईकोर्ट ने कहा कि विशेष अदालत का काम केवल यह देखना है कि क्या आरोप तय करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं, न कि सबूतों की पूरी तरह से जांच करना।
फैसले में कहा गया:
“न्यायालय को केवल उन मामलों में हस्तक्षेप करना चाहिए जहाँ किसी निर्दोष व्यक्ति को झूठे मुकदमे में फंसाने का स्पष्ट प्रयास हो और नागरिक के अधिकारों पर गंभीर असर पड़े। याचिकाकर्ता इस अदालत के समक्ष ऐसा कोई ‘रेयरस्ट ऑफ द रेयर’ मामला नहीं बना सके हैं। इसलिए यह याचिका अनुच्छेद 226 के तहत सुनवाई योग्य नहीं है।”
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